Sheetal Devi: Missed Medal, But Made History at Paris 2024 : पैरालंपिक खेलों में भारत के लिए गर्व की बात तब हुई जब 17 साल की शीतल देवी ने अपने पहले ही प्रयास में इतिहास रच डाला। शीतल देवी, जो दोनों हाथों के बिना पैदा हुईं, ने दुनिया को यह दिखा दिया कि शारीरिक अक्षमता सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती। 2024 पेरिस पैरालंपिक में शीतल ने अपने जबरदस्त प्रदर्शन से न केवल भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। लेकिन दुर्भाग्य से, वह प्री-क्वार्टरफाइनल में एक करीबी मुकाबले में हारकर बाहर हो गईं।
पेरिस पैरालंपिक 2024: शीतल देवी का एक अंक से छूटा मेडल :Paris Paralympics 2024: Sheetal Devi missed medal by one point
पेरिस पैरालंपिक में शीतल देवी का सामना चिली की टोक्यो पैरालंपिक सिल्वर मेडलिस्ट मारियाना जुनिगा से हुआ। दोनों खिलाड़ियों के बीच यह मुकाबला बेहद करीबी था। चार राउंड तक दोनों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और मुकाबला बराबरी पर रहा। लेकिन अंतिम राउंड में शीतल देवी मात्र एक अंक से हार गईं। शीतल ने 137 पॉइंट हासिल किए, जबकि मारियाना ने 138 पॉइंट प्राप्त किए। इस हार के बावजूद, शीतल का प्रदर्शन न केवल उल्लेखनीय था, बल्कि यह दिखाता है कि आने वाले समय में वह और भी ऊंचाइयों तक पहुंच सकती हैं।
दुनिया की पहली आर्मलेस आर्चर: शीतल देवी
शीतल देवी का नाम दुनिया की पहली आर्मलेस (बिना हाथों वाली) आर्चर के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। उन्होंने पेरिस पैरालंपिक में रैंकिंग राउंड में 720 में से 703 पॉइंट हासिल कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी और यह दर्शाता है कि कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने अपने सपनों को साकार किया। हालांकि, उनके रिकॉर्ड को तुर्किए की ओजनूर गिर्डी ने 704 अंक हासिल कर तोड़ दिया, लेकिन शीतल की उपलब्धि को कोई भी कम नहीं आंक सकता।
संघर्ष से सफलता तक का सफर
शीतल देवी का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में जन्मीं शीतल बचपन से ही फोकोमेलिया नामक जन्मजात बीमारी से पीड़ित थीं, जिसके कारण उनके दोनों हाथ विकसित नहीं हो पाए। जब वह केवल 7 साल की थीं, तब उनके दोनों हाथ नहीं थे, लेकिन इस शारीरिक चुनौती ने उन्हें कभी हारने नहीं दिया। उन्होंने अपने दाहिने पैर से धनुष को उठाना और दाहिने कंधे की मदद से डोरी खींचना सीखा। तीर को वह अपने जबड़े से छोड़ती हैं। यह प्रक्रिया इतनी कठिन थी कि किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए इसे अंजाम देना असंभव सा लगता है, लेकिन शीतल ने इसे करके दिखाया।
परिवार और समाज का समर्थन
शीतल के इस संघर्ष में उनके परिवार का भी बड़ा योगदान रहा है। उनके माता-पिता ने कभी उन्हें उनके शारीरिक विकलांगता के कारण कमजोर नहीं माना। उन्होंने हमेशा शीतल को प्रेरित किया और उनकी सभी जरूरतों का ध्यान रखा। समाज से भी उन्हें भरपूर समर्थन मिला, जिसने उन्हें अपनी क्षमताओं को पहचानने और आगे बढ़ने में मदद की।
पैरालंपिक में शीतल का डेब्यू और इतिहास रचना : Sheetal’s debut in Paralympics and history created
शीतल देवी का पैरालंपिक में डेब्यू करना किसी सपने के सच होने जैसा था। उन्होंने न केवल भारत के लिए पहली आर्मलेस आर्चर के रूप में खेलों में हिस्सा लिया, बल्कि उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि किस तरह से हिम्मत और मेहनत से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। उन्होंने रैंकिंग राउंड में शानदार प्रदर्शन किया और 703 अंक हासिल कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। यह उनके लिए और भारत के लिए गर्व की बात थी।
Sheetal Devi: Missed Medal, But Made History at Paris 2024
शीतल की प्रेरणा
शीतल देवी की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि एक प्रेरणा की है। वह उन सभी लोगों के लिए एक उदाहरण हैं, जो अपने जीवन में किसी न किसी रूप में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। शीतल ने यह साबित कर दिया है कि यदि आपके पास आत्मविश्वास, समर्पण, और कड़ी मेहनत का जज्बा है, तो आप किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।
आने वाले समय में संभावनाएं
हालांकि, शीतल देवी इस बार पैरालंपिक में मेडल जीतने में असफल रहीं, लेकिन उनके प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि वह भविष्य में और भी ऊंचाइयों तक पहुंच सकती हैं। उनके पास सभी आवश्यक गुण हैं जो एक महान खिलाड़ी में होने चाहिए। उन्होंने अपने जीवन की चुनौतियों को अपने सपनों की राह में बाधा बनने नहीं दिया, बल्कि उन्हें अपनी ताकत बना लिया।
शीतल देवी की इस अद्भुत यात्रा ने न केवल भारत को गर्वित किया है, बल्कि उन्होंने दुनिया को यह संदेश भी दिया है कि शारीरिक अक्षमता किसी की सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती। उनका जीवन और खेल में संघर्ष उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो अपनी परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं।